सपनों का शिकारी - Hunter of Dreams

रात का सन्नाटा गहराता जा रहा था। चारों ओर खामोशी पसरी थी, जैसे वक़्त ठहर सा गया हो। मोहन अपनी किताब पढ़ते-पढ़ते थक चुका था, लेकिन नींद उसकी आंखों से कोसों दूर थी। बीते कुछ दिनों से अजीब सपने उसे परेशान कर रहे थे। ये सपने इतने सजीव और डरावने होते कि वो पसीने में लथपथ जाग जाता। हर रात, वही चेहरा... वही अंधकार... और वही खौफनाक हंसी।

मोहन को याद नहीं आता था कि वह चेहरा किसका है, लेकिन वह चेहरा जैसे उसके सपनों में शिकारी बनकर आ रहा था। उसकी आंखों में ऐसा जादू था जो उसे जकड़ लेता और उसकी आत्मा को भीतर तक झकझोर देता।