शहर के बीचों-बीच स्थित एक पुराना अपार्टमेंट, जिसे लोग "वर्मा विला" के नाम से जानते थे, पिछले कुछ सालों से खाली पड़ा था। अफवाहें थीं कि वहाँ अजीब घटनाएँ होती हैं—रात में किसी के चलने की आवाज़ें, दरवाजों का अचानक खुलना-बंद होना, और दीवारों से आती सिसकियों की गूंज। लेकिन साक्षी इन बातों पर यकीन नहीं करती थी।
नौकरी के सिलसिले में जब उसे शहर आना पड़ा, तो उसने इस अपार्टमेंट में रहने का फैसला किया। किराया सस्ता था, और उसे भूत-प्रेत जैसी कहानियों में कोई दिलचस्पी नहीं थी।
नया घर, नई शुरुआत
शुरुआत के कुछ दिन ठीक गुजरे। अपार्टमेंट सुंदर था, बालकनी से पूरा शहर दिखता था, और ठंडी हवा में एक अजीब सुकून था। लेकिन धीरे-धीरे चीज़ें बदलने लगीं।
रात के समय उसे ऐसा महसूस होता कि कोई उसे देख रहा है। कभी-कभी कमरे का पंखा अपने आप चलने लगता, तो कभी लाइट टिमटिमाने लगती। एक रात, जब वह सो रही थी, तो उसे लगा कि कोई धीमी आवाज़ में उसका नाम पुकार रहा है—"साक्षी... साक्षी..."।
वह घबराकर उठी और पूरे कमरे की तलाशी ली, लेकिन वहाँ कोई नहीं था।
"यह बस मेरा वहम है," उसने खुद को समझाया और पानी पीने चली गई। लेकिन अगले दिन से घटनाएँ और अजीब होने लगीं।
अतीत की परछाइयाँ
एक शाम, वह अपनी बालकनी में बैठकर कॉफी पी रही थी, जब नीचे खड़ा एक बुजुर्ग उसे लगातार घूर रहा था। जब उसने उनसे पूछा, "क्या हुआ अंकल?", तो उन्होंने बस एक ही सवाल किया—
"तुम्हें यहाँ कुछ अजीब महसूस नहीं होता?"
साक्षी को झटका लगा। उसने जब और पूछा तो बुजुर्ग बोले, "इस अपार्टमेंट की तीसरी मंज़िल पर कभी एक लड़की रहती थी—नेहा। वो अकेली थी, ठीक वैसे ही जैसे तुम। एक दिन उसने खुद को अपने ही कमरे में बंद कर लिया और फिर कभी बाहर नहीं आई। जब दरवाज़ा तोड़ा गया, तो वह... मर चुकी थी।"
"कैसे?" साक्षी ने कांपती आवाज़ में पूछा।
"किसी को नहीं पता। बस इतना याद है कि मरने से पहले वो कहती थी कि कोई उसे मारने की कोशिश कर रहा है। मगर कमरे में और कोई नहीं था।"
साक्षी के रोंगटे खड़े हो गए। उसने जब घर लौटकर इंटरनेट पर सर्च किया, तो वर्मा विला और नेहा की मौत के बारे में कई खबरें मिलीं।
अब वह परेशान रहने लगी थी। कभी-कभी उसे लगता कि आइने में उसकी परछाईं थोड़ी अलग दिख रही है, कभी उसे अपने पीछे किसी की परछाईं दिखाई देती। और एक रात...
सच या वहम?
उस रात साक्षी अपने लैपटॉप पर काम कर रही थी, जब उसे लगा कि कोई उसके ठीक पीछे खड़ा है। उसने झट से पलटकर देखा—कमरे में कोई नहीं था।
लेकिन तभी शीशे में उसे एक परछाई दिखी। वो उसकी अपनी नहीं थी। वह परछाई हिल रही थी... साक्षी की ओर देख रही थी... मुस्कुरा रही थी।
अचानक, कमरे का दरवाज़ा ज़ोर से बंद हो गया। लाइट बंद हो गई। और एक ठंडी, भारी आवाज़ गूंज उठी—
"साक्षी... तुम भी नेहा की तरह अकेली हो न?"
साक्षी का शरीर काँपने लगा। उसने खुद को संभाला और लाइट ऑन करने के लिए स्विच की तरफ दौड़ी। लेकिन जैसे ही उसने स्विच दबाया, उसके सामने आईने में एक चेहरा दिखा—नेहा का!
उसकी आँखें सुर्ख थीं, होंठ हल्के खुले हुए, और चेहरे पर दर्द भरी मुस्कान थी।
"तुम बच नहीं सकती..."
एक चीख के साथ साक्षी बेहोश हो गई।
अंत या एक नई शुरुआत?
सुबह जब साक्षी को होश आया, तो वह अपने बिस्तर पर थी। कमरा सामान्य लग रहा था।
"क्या ये सब मेरा वहम था?" उसने खुद से पूछा।
लेकिन फिर उसने आईने की ओर देखा। वहाँ उसकी अपनी परछाई के साथ एक और परछाई खड़ी थी—बिल्कुल उसके पीछे।
और इस बार, वह मुस्कुरा नहीं रही थी... वह साक्षी को देख रही थी।
सच या वहम? यह तो साक्षी ही जानती थी... या शायद नहीं।
Image Credit: Chat GPT
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