गुमनाम दस्तक

 

गुमनाम दस्तक-Short Kahani-Thrilling Shots

सर्दियों की एक ठंडी रात थी। हल्की बारिश हो रही थी और हवा के झोंके खिड़कियों से टकरा रहे थे। निशा अपने घर में अकेली थी। उसके पति अनुराग बिजनेस टूर पर गए थे और अगले दो दिनों तक घर वापस नहीं आने वाले थे। उसने सोचा कि यह समय किताब पढ़ने के लिए अच्छा रहेगा। वह एक मनोवैज्ञानिक थ्रिलर उपन्यास लेकर बैठी ही थी कि अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई।

निशा चौंकी। इतनी रात को कौन आ सकता है? उसने घड़ी देखी—रात के 12:30 बज रहे थे। डरते-डरते वह दरवाजे के करीब गई और झिझकते हुए पूछा, "कौन है?"

कोई जवाब नहीं। सिर्फ़ मौन।

उसके दिल की धड़कन तेज़ हो गई। उसने आँख की दरार से बाहर झाँका, पर कुछ नहीं दिखा। बाहर अंधेरा था। बारिश की हल्की बूँदें गिर रही थीं और हल्की ठंडक हवा में घुली हुई थी।

निशा ने सोचा कि शायद उसका वहम होगा और वापस सोफे पर बैठ गई। लेकिन जैसे ही उसने किताब खोली, दरवाजे पर फिर से दस्तक हुई—इस बार ज़रा ज़ोर से।

अब तो उसके रोंगटे खड़े हो गए। उसने हिम्मत जुटाई और दरवाजा खोलने का फैसला किया। जैसे ही उसने कुंडी हटाई और दरवाजा थोड़ा सा खोला, एक ठंडी हवा का झोंका उसके चेहरे से टकराया। लेकिन सामने कोई नहीं था।

अचानक, उसकी नज़र नीचे गई—दरवाजे के ठीक सामने एक कागज़ का टुकड़ा पड़ा था। उसने काँपते हाथों से उसे उठाया और पढ़ा—

"क्या तुम अकेली हो?"

उसका दिल जोर से धड़कने लगा। यह किसने लिखा? और क्यों? उसने जल्दी से दरवाजा बंद कर दिया और सारी कुंडियाँ चेक कीं। वह कांप रही थी। घबराहट में उसने घर की सारी लाइटें जला दीं और अपने कमरे में चली गई।

रात भर उसे नींद नहीं आई। अगले दिन सुबह उसने इस बारे में अपनी दोस्त स्नेहा को बताया। स्नेहा ने कहा कि शायद यह किसी का मज़ाक हो, लेकिन फिर भी सावधान रहने की सलाह दी।

उस रात, निशा ने दरवाजे की तरफ एक कुर्सी रख दी ताकि अगर कोई आए तो उसे पहले खटखटाने की ज़रूरत पड़े।

लेकिन फिर वही हुआ। रात के ठीक 12:30 पर दरवाजे पर फिर दस्तक हुई।

इस बार दस्तक ज़्यादा ज़ोर से थी।

निशा की साँसें तेज़ हो गईं। उसके हाथ पसीने से भीग गए। उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे। लेकिन इस बार उसने फैसला किया कि वह खिड़की से बाहर झाँककर देखेगी।

जैसे ही उसने पर्दा हटाया, उसका शरीर जम सा गया।

बाहर कोई खड़ा था। एक परछाईं।

चेहरा नहीं दिख रहा था। परछाईं हल्की बारिश में भीग रही थी, स्थिर खड़ी थी।

निशा के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। उसने जल्दी से पर्दा गिराया और साँस रोक ली।

तभी एक ज़ोरदार धमाका हुआ। जैसे किसी ने दरवाजे को धक्का दिया हो।

निशा चीख पड़ी। वह भागकर अपने कमरे में गई और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया।

उसने तुरंत पुलिस को फोन किया।

कुछ ही मिनटों में पुलिस आ गई। लेकिन जब पुलिस ने बाहर देखा, तो वहाँ कोई नहीं था। न कोई परछाईं, न कोई निशान। सिर्फ़ दरवाजे के पास एक और कागज़ पड़ा था—

"तुमने पुलिस को बुलाया, पर क्या वे तुम्हें बचा सकते हैं?"

निशा पूरी तरह से टूट चुकी थी। वह डर के मारे काँप रही थी। पुलिस ने घर की तलाशी ली, पर कुछ संदिग्ध नहीं मिला। उन्होंने उसे हिदायत दी कि दरवाजे पर सीसीटीवी कैमरा लगवा ले और सावधान रहे।

अगली रात, निशा ने अनुराग को पूरी बात बताई और कहा कि वह अब और अकेले नहीं रह सकती। अनुराग ने अपनी यात्रा छोटी कर दी और तुरंत वापस आ गया।

सीसीटीवी कैमरा लग गया, लेकिन फिर कभी कोई दस्तक नहीं हुई।

क्या यह किसी का मज़ाक था? कोई अजनबी जिसने डराने की कोशिश की? या फिर कोई गहरी, गुमनाम परछाईं जो अंधेरे में छिपी हुई थी?

कोई नहीं जानता। पर निशा आज भी जब रात के 12:30 बजते हैं, तो उसकी धड़कनें तेज़ हो जाती हैं, मानो किसी गुमनाम दस्तक का इंतज़ार कर रही हों…


Image Credit: Chat GPT

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