सपनों का शिकारी - Hunter of Dreams

रात का सन्नाटा गहराता जा रहा था। चारों ओर खामोशी पसरी थी, जैसे वक़्त ठहर सा गया हो। मोहन अपनी किताब पढ़ते-पढ़ते थक चुका था, लेकिन नींद उसकी आंखों से कोसों दूर थी। बीते कुछ दिनों से अजीब सपने उसे परेशान कर रहे थे। ये सपने इतने सजीव और डरावने होते कि वो पसीने में लथपथ जाग जाता। हर रात, वही चेहरा... वही अंधकार... और वही खौफनाक हंसी।

मोहन को याद नहीं आता था कि वह चेहरा किसका है, लेकिन वह चेहरा जैसे उसके सपनों में शिकारी बनकर आ रहा था। उसकी आंखों में ऐसा जादू था जो उसे जकड़ लेता और उसकी आत्मा को भीतर तक झकझोर देता।

उस रात भी कुछ ऐसा ही हुआ। मोहन ने जैसे ही अपनी आंखें बंद कीं, वह फिर से उसी अंधेरे जंगल में पहुंच गया। चारों ओर घने पेड़, झींगुरों की आवाज़ और कदमों की हल्की आहट। उसने अपने चारों ओर देखा, लेकिन वहां कोई नहीं था। तभी एक अजीबोगरीब सी हंसी उसके कानों में गूंजी।

"तुम बच नहीं सकते," एक गूंजती हुई आवाज़ ने कहा।

मोहन के रोंगटे खड़े हो गए। वह दौड़ने लगा, लेकिन उसका शरीर जैसे भारी हो गया था। उसके पैरों की गति धीमी होती जा रही थी। तभी, वह चेहरा सामने आ गया—लंबे बाल, लाल आंखें और एक शैतानी मुस्कान।

"तुम्हारे सपनों का शिकारी हूं मैं," वह बोला। "यह सपना नहीं, तुम्हारी हकीकत है।"

मोहन ने घबराकर अपनी आंखें खोल दीं। वह बुरी तरह कांप रहा था। कमरे में अंधेरा छाया हुआ था, और घड़ी की टिक-टिक साफ सुनाई दे रही थी। उसने पानी का गिलास उठाया, लेकिन उसके हाथ इतने कांप रहे थे कि गिलास फर्श पर गिरकर टूट गया।

उसी वक्त, खिड़की के पास से एक साया गुजरा। मोहन ने अपनी सांस रोक ली। क्या ये उसकी कल्पना थी या सचमुच कोई वहां था? उसने हिम्मत जुटाकर खिड़की की ओर देखा, लेकिन वहां कुछ नहीं था।

अगली सुबह, मोहन ने अपने दोस्त आर्यन को सबकुछ बताया। आर्यन ने उसकी बात को हल्के में लेते हुए कहा, "तुम्हें बस नींद पूरी करने की जरूरत है। शायद ज्यादा तनाव ले रहे हो।"

लेकिन मोहन जानता था कि ये सिर्फ सपने नहीं थे। उस रात, उसने जागते रहने की ठानी। उसने लाइट ऑन रखी और अपनी किताब पढ़ने लगा। आधी रात बीतने को थी कि अचानक कमरे की लाइट खुद-ब-खुद बुझ गई। मोहन की धड़कनें तेज हो गईं।

तभी, वही हंसी फिर सुनाई दी। वह चेहरा सामने आ गया, लेकिन इस बार वह केवल सपना नहीं था। वह सचमुच मोहन के सामने खड़ा था।

"तुम मुझसे भाग नहीं सकते," शिकारी ने कहा।

मोहन ने डरते हुए पूछा, "तुम कौन हो? क्या चाहते हो?"

"तुम्हारे डर," शिकारी ने जवाब दिया। "तुम्हारे सपनों ने मुझे जन्म दिया है। जितना तुम डरोगे, मैं उतना ही ताकतवर बनूंगा।"

मोहन को समझ नहीं आया कि वह क्या करे। तभी, उसे अपनी दादी की कही एक बात याद आई: "डर का सामना करो, वरना वह तुम्हें खत्म कर देगा।"

मोहन ने अपनी सारी हिम्मत जुटाई और शिकारी की लाल आंखों में देखा। उसने जोर से कहा, "तुम मेरे सपनों में हो सकते हो, लेकिन मेरी जिंदगी के मालिक नहीं। मैं तुमसे नहीं डरता!"

शिकारी ने एक जोरदार चीख मारी और धीरे-धीरे धुंध में बदल गया। मोहन का दिल तेज़ी से धड़क रहा था, लेकिन उसके चेहरे पर संतोष था।

उसके बाद, मोहन ने फिर कभी उस शिकारी को नहीं देखा। उसने सीखा कि डर को दबाने से वह और बड़ा बनता है। उसे खत्म करने का एकमात्र तरीका है उसका सामना करना।

"सपनों का शिकारी" अब केवल एक कहानी थी, लेकिन यह मोहन के लिए एक सबक बन चुकी थी—डर को स्वीकार करके ही उसे हराया जा सकता है।

No comments:

Post a Comment