रात के सन्नाटे में सृष्टि अपने छोटे से फ्लैट की बालकनी में बैठी थी। शहर की भागदौड़ के बीच ये एकमात्र जगह थी जहाँ वह खुद को थोड़ा शांत महसूस कर पाती थी। लेकिन उस रात कुछ अलग था। हवा में एक अजीब
सी बेचैनी थी। दूर कहीं, रात के गहरे अंधेरे में, किसी पुरानी घड़ी की टिक-टिक की गूंज सुनाई दे रही थी।सृष्टि ने हाल ही में इस शहर में नौकरी के लिए कदम रखा था। उसे उम्मीद थी कि यह बदलाव उसे उसकी जिंदगी की उलझनों से बचा लेगा। लेकिन यहाँ आकर उसे एहसास हुआ कि भागने से सन्नाटे का पीछा नहीं छूटता।
सृष्टि की हर रात, अजीब सपनों और अज्ञात आवाज़ों में कटने लगी। वह अक्सर अपनी बालकनी में बैठी, उसी घड़ी की टिक-टिक और एक हल्की फुसफुसाहट सुनती थी। फुसफुसाहट अस्पष्ट थी, लेकिन ऐसा लगता जैसे कोई उससे कुछ कहना चाह रहा हो।
एक रात, सपने में उसने देखा कि वह एक सुनसान हवेली में खड़ी है। हवेली के हर कोने में अजीब आवाज़ें गूंज रही थीं। अचानक, उसने एक दरवाजे पर लिखा देखा: "मौन में छुपा है सत्य।"
सुबह उठते ही, वह पसीने से तर थी। उसने इस सपने को नजरअंदाज करने की कोशिश की, लेकिन वह गूंजती हुई आवाज़ उसका पीछा नहीं छोड़ रही थी।
सृष्टि ने इन आवाज़ों और सपनों की असलियत जानने के लिए अपने ऑफिस के सहकर्मी आदित्य से बात की। आदित्य ने बताया कि उसकी बिल्डिंग के पास एक पुरानी घड़ी की दुकान है, जिसे "मौन का कोना" कहा जाता है। यह दुकान अब वीरान पड़ी थी।
सृष्टि ने हिम्मत जुटाई और उस दुकान तक पहुँची। बाहर से दुकान पर एक पुराना ताला लटका था। लेकिन जैसे ही उसने दरवाजे को छुआ, वह अपने आप खुल गया।
अंदर हर तरफ घड़ियाँ थीं, जो अब बंद थीं। लेकिन अचानक, एक घड़ी चलने लगी और उसकी टिक-टिक ने सृष्टि के कानों में एक गूंज पैदा की। उसे ऐसा लगा जैसे कोई उसे पुकार रहा हो। घड़ी के भीतर से आती एक फुसफुसाहट ने कहा, "तुम्हें जो चाहिए, वो मौन के भीतर मिलेगा।"
सृष्टि ने घड़ी के पीछे छुपे एक छोटे कमरे का दरवाजा देखा। वह डरते-डरते अंदर गई। वहाँ दीवार पर लिखा था: "मौन सुनो। जो गूंजेगा, वही सच है।"
उसने एक क्षण के लिए अपनी आँखें बंद कीं। और तभी, उसकी माँ की आवाज सुनाई दी। माँ, जिसे उसने कई साल पहले खो दिया था। आवाज ने कहा, "सृष्टि, तुम जिस शांति को ढूंढ रही हो, वह तुम्हारे भीतर है। आवाज़ें तुम्हारे ही अवचेतन का हिस्सा हैं। बस खुद से मत भागो।"
उस रात के बाद, सृष्टि ने अपनी बेचैनियों का सामना करना शुरू कर दिया। उसने महसूस किया कि हर आवाज, हर गूंज, उसी की अपनी थी। उसे अब सन्नाटे से डर नहीं लगता था, बल्कि वह मौन में अपनी ताकत ढूंढने लगी।
"मौन की गूंज" ने सृष्टि को उसकी खोई हुई पहचान से मिलाया। शायद, मौन में जो गूंजता है, वह हर किसी को उसकी असली राह दिखा सकता है।
Image Credit: Chat GPT
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