खामोशी का कत्ल
अलका के घर में घड़ी की सूइयाँ रात के तीन बजा रही थीं। बाहर गहरी ठंड थी, और अंदर सन्नाटा। घर की दीवारें भी जैसे इस खामोशी को सहम कर सुन रही थीं। लेकिन अलका की आँखों में नींद नहीं थी। वह बिस्तर पर पड़ी छत को घूर रही थी, जैसे कोई अदृश्य बोझ उसके दिल और दिमाग पर भारी हो।
पति के गुजर जाने के बाद से यह खामोशी अलका की साथी बन चुकी थी। वह इस खामोशी को समझ चुकी थी, उसके दर्द को पहचान चुकी थी। लेकिन आज की रात कुछ अलग थी। यह खामोशी चुप नहीं थी। यह खामोशी चीख रही थी।
अचानक, हवा का एक तेज झोंका खिड़की के पर्दे को उड़ा ले गया। अलका चौंक कर उठ बैठी। उसने कमरे में नजर दौड़ाई। सब कुछ सामान्य था, फिर भी दिल में अजीब सी बेचैनी थी।
"यह हवा अंदर कैसे आ रही है?" उसने बड़बड़ाते हुए खिड़की बंद करने की कोशिश की। लेकिन जैसे ही वह खिड़की के पास पहुँची, उसे पीछे से किसी की आहट सुनाई दी।
"कौन है?" उसकी आवाज डर से काँप गई।
जवाब में फिर वही खामोशी। पर इस बार खामोशी में एक अजीब सी गूँज थी। अलका ने अपने मोबाइल की टॉर्च ऑन की और रोशनी कमरे में घुमाई। सब कुछ ठीक था। उसने राहत की साँस ली और खिड़की बंद कर दी।
वह वापस बिस्तर पर बैठी ही थी कि बगल के कमरे से धीमी-धीमी आवाजें सुनाई देने लगीं। यह कोई सामान्य आवाज नहीं थी। ऐसा लग रहा था जैसे कोई फुसफुसा रहा हो।
डर और जिज्ञासा के बीच फँसी अलका ने हिम्मत जुटाई और धीरे-धीरे बगल के कमरे की ओर कदम बढ़ाए। उसकी साँसें तेज थीं। दरवाजे के पास पहुँचकर उसने कान लगाए। अंदर कुछ खटपट हो रही थी।
हाथ काँपते हुए उसने दरवाजा खोला। कमरा खाली था। पर ठंड ऐसी कि हड्डियों तक उतर जाए। उसने कमरे में चारों तरफ देखा, तभी उसकी नजर अलमारी पर पड़ी। वहाँ एक परछाईं हल्की-सी हिलती हुई दिखी।
अलका ने डरते हुए अलमारी खोली। अंदर एक पुरानी, धूल से ढकी डायरी पड़ी थी। उसने वह डायरी निकाली और जैसे ही पहला पन्ना खोला, उसकी साँसें थम गईं।
"अगर तुमने यह डायरी खोली है, तो अब सच तुम्हारे सामने आएगा।"
अलका के शरीर में झुरझुरी दौड़ गई। उसने पन्ने पलटना जारी रखा। हर पन्ने पर किसी औरत के दर्दभरे शब्द थे। वह अपने अकेलेपन और मौत की ओर बढ़ते कदमों की कहानी लिख रही थी।
अलका का सिर चकराने लगा। उसकी उँगलियों से डायरी छूटकर गिर गई। कमरे की ठंड अचानक और बढ़ गई। उसने महसूस किया कि उसके पीछे कोई खड़ा है।
"तुम्हें याद है, अलका?" एक गूँजती हुई, पराई आवाज ने कमरे को भर दिया।
"त… तुम कौन हो?" अलका की आवाज घुट रही थी।
"मैं वही हूँ, जिसकी खामोशी का कत्ल तुमने किया था।"
अचानक कमरे की बत्तियाँ बुझ गईं। अँधेरा घना हो गया। अलका की चीख गूँज उठी, और फिर सब खामोश हो गया।
अगली सुबह अलका का शव उसी कमरे में मिला। उसकी आँखें खुली थीं, और हाथ में वही डायरी थी।
पुलिस ने इसे आत्महत्या का मामला घोषित कर दिया। लेकिन पड़ोसी आज भी कहते हैं कि अलका के घर से रात में फुसफुसाहटें सुनाई देती हैं।
"खामोशी कभी खत्म नहीं होती," वे कहते हैं। "यह बस अपने अगले शिकार की तलाश करती है।"
Image Credit: Chat GPT
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